अभी कुछ दिनों पहले ही हास्य अभिनेता राजू श्रीवास्तव की एक प्रस्तुति को देखकर मैं खूब हंसा था। राजू श्रीवास्तव ने कुछ फिल्मी गानों की तीन-पांच करते हुए यह साबित करने की कोशिश की थी कि गाना लिखने वालों ने गीत तो लिख दिया लेकिन उन्हें नहीं पता कि नई पीढ़ी उनके गानों की किस तरह से देखेंगी। फिल्मों के गानों का अर्थ ढूंढने जाओगे तो अनर्थ हो जाएगा।
एक गीत है- सुबह से लेकर शाम तक और शाम से लेकर सुबह तक मुझे प्यार करो।
ससुरी 24 घंटे प्यार ही करवाते रहेगी तो सडांस कब जाओगी।
इसी तरह एक गीत और है जो फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा से है-
फूलों का तारों का सबका कहना है। एक हजारों में मेरी बहना है, सारी उमर हमें संग रहना है।
बताइए... कैसा भाई बोलता है जिन्दगी भर बहन के साथ ही रहेगा। क्या बहन की शादी नहीं करेगा। दहेज का खर्चा बचा रहा है।
राजू श्रीवास्तव की इस प्रस्तुति को देखकर मैं भी सोच में पड़ गया कि क्या वाकई आप हर गाने की वाट लगा सकते हैं। शायद ऐसा हो सकता है क्योंकि बाजार के इस युग में अब जिन्दगी को कोई गंभीरता से लेता नहीं है। पिज्जा खाओं और जींस पैंट पर हाथ पोंछकर चलते बनो।
हाल के दिनों में जब मैं गाने के शौकीन एक नए मित्र से मिला तो वह भी मुझे गाने की वाट लगाते ही मिला। कुछ बानगी देखिए-
तुम मुझे न चाहो तो कोई बात नहीं...तुम किसी गैर को चाहोगी तो मुश्किल होगी
लड़की- क्या मुश्किल होगी... क्या चाकू मार देगा या तेजाब डाल देगा मेरे चेहरे पर साला कमीना। क्या मुश्किल होगी.. क्या मेरे बाप को बता देगा कि मैं मुंह पर मफलर बांधकर कहां-कहां घूमती हूं।
एक और गीत-
अंखियों से गोली मारे..
साली आंखे हैं या देशी तमंचा।
आजा मेरी गाड़ी में बैठजा
साला आजा गाड़ी में बिठा रहा है... कल बोलेगा गाड़ी भरी हुई है चल गोद में बैठ जा।
नींद आती नहीं, रात जाती नहीं.... आती नहीं... आती नहीं
बेटा इसबगोल पीकर सोया कर। सुबह ठीक-ठाक आ जाया करेगी।
मुझको यारों माफ करना मैं नशे में हूं
बेटा मैं होश में हूं। दो लात जमाकर तेरा नशा भी उतार दूंगा
अनहोनी को होनी कर दे होनी को अनहोनी, एक जगह जब जमा हो तीनों
अमर-अकबर- अन्थोनी
-मैच की ऐसी-तैसी कर दें.. मैच की कर दे बोनी, एक जगह जब जमा हो तीनो........ और धोनी।
खैर ऐसा क्यों हो रहा है यह मुझे नहीं मालूम लेकिन लगता है कि कचरे के उत्पादन में भी मनोरंजन ढूंढ़ने की संस्कृति ने लोगों को वाट लगाने की कला सीखा दी है। धन्य है वे लोग जो हत्या को हलाल में बदलना जानते हैं।
कुछ अरसा पहले जब फिल्मी गीतकारों का जलवा-जलाल हुआ करता था तब कुछ अच्छे गीत सुनने को मिल जाया करते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब तेली का तेल भी निकल सकता है और जूता चुर्र... भी कर सकता है। बगैर माचिस के बीड़ी भी जल सकती है और.... भी बहुत कुछ हो सकता है।
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Friday, June 4, 2010
गाने की वाट
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