एक लड़की जो
मां की पुरानी खांसी
मकान मालिक की धौंस से
जानती है निपटना
इंच-इंच भर लड़ते हुए
एक लड़की जो
भाई की बेकारी
पिता का दर्द ओढ़ते हुए
जानती है जीना
इंच-इंच भर अड़ते हुए
एक लड़की जो
प्रेम के पचड़ों से
जानती है बचना
इंच-इंच भर बढ़ते हुए
क्या ऐसी किसी लड़की के लिए
कभी कोई कविता नहीं लिखी जाएगी
मैंने तो लिख दी है
शीर्षक है-शाबाश लड़की

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