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Thursday, June 10, 2010

हताश और निराश लोगों.. शायद यह कविता आपके काम आ जाए

जो कोई भी यह कहता है कि वह जीवन में कभी निराश नहीं हुआ तो शायद वह झूठ बोलता है। फरेब और मक्कारी का पंजा जब संवेदनशील आदमी को जकड़ता है तो आदमी मौत को भी गले लगाने के लिए आतुर हो जाता है। एक दिन ऐसे ही निराशा के क्षणों में मुझे लगा कि यह दुनिया मेरे किसी काम की नहीं है। साला... मैं जिस किसी के लिए भी अच्छा करता हूं वहीं मुझे सांप बनकर डंसने चला आता है। अचानक मैंने तय किया बस अब दुनिया को अलविदा कह ही देना चाहिए।

मैं सुनियोजित तरीके से मरने की योजना बनाने लगा। मसलन मैंने तय किया कि मैं चिट्ठी-वगैरह लिखकर मरूंगा कि पुलिस वालों... कमीनों... मरने के बाद मेरे परिवार को परेशान मत करना.. क्योंकि मैं परिवार के कारण नहीं अपनों दोस्तों से मिले धोखों के कारण इस दुनिया को नमस्ते बोल रहा हूं। मैं मन ही मन उन उपायों को भी सोच रहा था जिससे मरने पर कम से कम तकलीफ हो। जहर खाकर आदमी बहुत तड़पता है। ट्रेन से कटने पर भी लोग एसी के डिब्बे में बैठे रहते हैं। ये नहीं कि एक बार उतरकर देखने की जहमत उठाएं कि कौन महापुरूष उनकी दुनिया को छोड़कर चला गया है। फांसी लगाकर जीभ बाहर निकालो तो लोग ताना मारते हैं-साला मरते-मरते भी जीभ निकालकर चिढ़ा रहा है। अच्छा है मर गया। साला.. बहुत सी लड़कियों से मोबाइल पर बात करता था। इन दिनों फांसी लगाकर मरने पर मीडिया ढंग से कव्हरेज भी नहीं देता है। मीडिया की शायद यह सोच बन गई है कि फांसी तो केवल लड़कियां ही लगाएंगी वह भी प्रेम करने वाली लड़कियां। यह बात मैं मजाक में इसलिए कर रहा हूं कुछ समय पहले तक मैं मौत से डरता था, लेकिन जबसे मैंने गुरूदेव रविंद्रनाथ टैगोर की एक कविता पढ़ी है तब से मुझे लगने लगा है कि मैं तो बिलावजह ही छोटी सी छोटी चीजों को लेकर परेशान रहा करता था। अब मैं जब भी निराश होता हूं तो सीटी बजाता हूं।

हां तो मित्रों जब मैंने मरने की योजना बनाई तो मेरे दिमाग में यह विचार आया कि क्यों न एक बार फिल्म दीवार का दृश्य दोहराया जाए और अभिताभ के जैसे भगवान से बातचीत कर ली जाए- खुश तो बहुत होंगे आज......।
मैं आकाशवाणी रायपुर के पास स्थित काली मां के मंदिर में चला गया। जब मैं मंदिर के चक्कर लगा रहा था तभी दीवार पर मुझे गुरूदेव रविंद्रनाथ टैगोर की एक कविता दिखाई पड़ी। इस कविता को पढ़कर मैं काफी देर तक रोता रहा। कहते हैं कि रोने से मन हल्का हो जाता है। जब मैं रोकर थोड़ा शांत हुआ तो मैंने एक कागज पर कविता नोट की। दोस्तों यह कविता क्या है इसे आप भी पढ़े। हो सकता है निराशा के किन्ही क्षणों में यह कविता आपके काम आ जाए।

प्रार्थना

हे देवी विपत्ति में तुम मेरी रक्षा करो यह मेरी प्रार्थना नहीं
विपत्ति में न डर
जाऊं
यही मेरी इच्छा।

दुख-संताप से दुखी मेरे मन को
तुम सांत्वना प्रदान करो
यही मेरी इच्छा


दुख पर मुझे विजय मिले
यही मेरी इच्छा।

मेरी मदद के लिए अगर कोई नहीं आया
तब भी मेरा मनोबल न टूटे
यही मेरी इच्छा

इस दुनिया में अगर मेरा नुकसान हुआ
सिर्फ धोखा ही मेरा नसीब हुआ
तो भी मेरा मन अडिग रहे

यही मेरी इच्छा।

तुम मुझे बचाओ
यह मेरी इच्छा नहीं
मेरा बोझ हल्का करके
तुम मुझे सांत्वना दो
यह मेरी प्रार्थना नहीं

बोझ उठाने की शक्ति मुझमें आए
यही मेरी इच्छा


अच्छे दिनों में सिर झुकाकर
मैं तुम्हारा चेहरा पहचान सकूं
दुख के अंधकार में
सारी दुनिया मुझे धोखा दे
तब भी मेरे मन में
तुम्हारे प्रति कोई शंका न हो।

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