ज्ञानदत्त अंग्रेजी के ब्लागर है।
अंग्रेजी के ब्लागर इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि हिन्दी में अंग्रेजी के शब्दों को बड़ी बेशर्मी से ठूंसने का जो काम ज्ञानदत्त करते हैं उतनी बेशर्मी से कोई और दूसरा शायद नहीं कर सकता है। उनकी तुलना मैं संजय दत्त से भी इसलिए कर रहा हूं क्योंकि काफी समय पहले संजय दत्त की मानसिक हलचल भी ठीक नहीं थी। यदि हलचल ठीक ही होती तो संजय दत्त को तीन-चार शादियां नहीं करनी पड़ती। जेल की हवा नहीं खानी पड़ती और सबसे बड़ी बात उत्तर प्रदेश में है दम.. यहां होता है अपराध कम जैसा घटिया नारा लगाने वाले मुलायम सिंह का साथ भी नहीं देना पड़ता।
भाइयों यदि आप लिखते हैं तो आपको लिखने से पहले गंगा किनारे लोटा लेकर टहलने वाले ज्ञानदत्त से प्रमाण पत्र लेना ही होगा। ज्ञानदत्त ही बताएंगे कि किसकी पोस्ट का विचार अच्छा है और किसकी पोस्ट से विचार गायब है। भाइयों चाहता तो मैं भी ज्ञानदत्त की तरह कन्टेंट शब्द का प्रयोग कर सकता था लेकिन हिन्दी की सेवा में लगे हैं सो अपराध कम से कम हो यही कोशिश रहती है।
तो भाइयों अंग्रेजी के इस ब्लागर ने दिनांक 11 मई 2010 को एक पोस्ट लगाई और यह बताने का प्रयास किया कि समीरलाल उड़न तश्तरी और अनूप शुक्ल में कौन श्रेष्ठ है। यदि मानसिक दिवालिएपन के शिकार श्रीमान ज्ञानदत्त जी केवल इस शब्द तक ही अपने को सीमित रखते हुए निर्णय पाठकों पर छोड़ देते तो मैं क्या बहुत से लोग कुछ नहीं कहते लेकिन जब बात जब नामवर सिंह का पूज्यनीय पिताजी बनने से ऊपर पहुंच जाए तो समझिए कि कही न कहीं कोई साजिश हैं।
मीनाबाजार में जाकर गाल पर हाथ रखते हुए फोटो खिंचाने वाले भइये ज्ञानदत्तजी। ऐसी फोटो लगाकर आप समझते होंगे कि आप बहुत बौद्धिक है, मैं मानता हूं कि जो आदमी फोटो में भी अपने आपको नहीं बदल पाया वह दुनिया को क्या खाक बदलेगा। श्रीमानजी हिन्दी ब्लागिंग को नामवर की नहीं समझदार लोगों की जरूरत ज्यादा है। आज आप दो लोगों के लिए प्रमाण पत्र बांट रहे हैं कल आप किसी के ब्लाग का नाम देखकर कह सकते हैं अपने ब्लाग का नाम तुरन्त बदल दीजिए क्योंकि यह वास्तु के हिसाब से ठीक नहीं है। परसो आपकी टिप्पणी किसी के कपड़े को लेकर भी आ सकती है और गदहे लोगों ने आपको स्वीकार करना चालू कर दिया तो फिर आप ब्लागरों को ई-मेल के जरिए भभूत भी भेजने लगेंगे। एक न एक दिन तो आप यह तमाशा करने ही वाले हैं। तो मैं किसी साजिश की ओर इशारा कर रहा था। साजिश यह है दोस्तों श्रीमान ज्ञानदत्तजी को लगने लगा है कि दो की लड़ाई का उन्हें फायदा किस तरह से मिले। निजी सुख-दुख, टिप्पणियों के अलावा एक-दूसरे के ब्लागों पर जाकर हालचाल जानने वाले ब्लागर अभी गुट में होते हुए भी खुश है कि चलो बात केवल रचनाकर्म पर हो रही है लेकिन ज्ञानदत्त की कोशिश है कि एक गुट के ब्लागर वही लिखे जो उस गुट का मुखिया चाहता है तो दूसरे गुट के ब्लागर भी वही चाकरी करें जो दूसरे गुट के मुखिया चाहते हैं।
मुझे ब्लागिंग की दुनिया में आएं हुए ज्यादा दिन नहीं हुए लेकिन देख रहा हूं कि कोई चिट्ठाचर्चा खोलकर अपने आपको मायापुरी का संपादक बना बैठा है तो कोई अभिताभ और विनोद खन्ना में मारपीट लिखकर अपने आपको मित्र प्रकाशन यानी मनोहर कहानियों का मालिक समझने की भूल कर रहा है।
तो भइए संजयदत्तजी अपनी मानसिक हलचल को ठीक करिए वैसे भी इलाहाबाद और उसके आसपास हर रोज यह खबर छपती रहती है कि रेलगाड़ी पटरी से उतर गई है। रेलगाड़ी भी पटरी से तब ही उतरती है जब या तो पटरी दिशा छोड़ देती है या फिर वाहन चालक की मानसिक दशा ठीक नहीं रहती है।
हां.. मैंने लिख तो दिया है लेकिन यह सब कुछ मैंने प्रमाण पत्र देने के लिए नहीं लिखा हैं। आपकी जय हो।
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