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Friday, May 14, 2010

आईएमए डिस्को डांसर टेनटेन टडन



कुछ समय पहले विशाल भारद्वाज की फिल्म कमीने का एक गीत काफी लोकप्रिय हुआ था। गीत तो पूरी तरह से याद नहीं लेकिन उसमें तेली के तेल-वेल का उल्लेख होने के साथ-साथ ढेनटेनटेडन शब्द पर काफी जोर दिया गया था। गीत कितना उपयोगी निकला और कितना नहीं इस बारे में बहुत ज्यादा ठीक-ठाक गुलजार साहब ही बता पाएंगे लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि ढेनटेनटेडन सुनकर लोगों को काफी मजा आया। कुछ ऐसा ही मजा लोगों को बी. सुभाष की फिल्म डिस्को डांसर देखने के बाद भी आया था। इस फिल्म में जैसे ही मिथुन पर्दे पर गाता था-आईएमए डिस्को डांसर... तो पब्लिक टेनटेन टडन करने लगती थी।

बहुत से लोग यह सोच सकते हैं कि मैं अचानक बी. सुभाष जैसे बी ग्रेड डायरेक्टर की फिल्म डिस्को डांसर का जिक्र लेकर क्यों बैठ गया हूं। हकीकत यह है कि आज लड़कियां काफी हाउस में कोल्ड काफी पीने, दस-बीस बार पिज्जा खाने, मैसेज.. नेट और पत्रकार बनने के बाद दिल लगाने का काम करती है लेकिन जिन दिनों मिथुन की फिल्म डिस्को डांसर का जोर था उन दिनों ऐसा नहीं था। लड़की को अपना बनाने के लिए मोहल्ले के छोकरों को न केवल मिथुन स्टाइल में हेयर स्टाइल रखनी पड़ती वरन सार्वजनिक गणेश उत्सव समारोह में नाच-नाचकर यह भी बताना होता था कि वह जबरदस्त डिस्को कर लेता है।

डिस्को डांस के युग में लड़कियां खूब छली गई है। वैसे तो हर समय में लड़कियां छली जाती रही है। चाहे वह धर्मवीर भारती का समय हो, अभिताभ का समय हो, अंखियों के झरोखे वाले सचिन का समय हो, शाहरूख का समय हो या फिर प्रियांशु का समय।

साहित्यकार धर्मवीर भारती के उपन्यास गुनाहों का देवता के बारे में एक समय यह विख्यात था कि लड़कियां सबमें उपन्यास के पात्र चंदर जैसा प्रेमी ही तलाशती रहती थी। इसके लिए वे उपन्यास को अपने तकिए के नीचे रखकर सोया करती थी। बहुत से विद्वान इसे श्रेष्ठ उपन्यास भी मानते हैं लेकिन मेरी मान्यता है कि उपन्यास ने युवाओं को थोथी किस्म की कोरी भावुकता के अलावा कुछ नहीं दिया। सुधा और चंदर का आदर्श प्रेम आज कहीं दिखाई नहीं देता है। खैर जमाना भी तो काफी बदल चुका है।

अब तो लड़की लड़के से कहती है-देखो पहले मुझको भोग लो। यदि मेरा भोग तुमको ठीक लगा तो अपन एक छत्त के नीचे रह सकते हैं वरना तुम किसी और को पकड़ लेना मैंने भी चार-पांच लोगों को अपना फोन नबंर दे रखा है। ( यही बात लड़का भी कह सकता है)

तो बात डिस्को डांसर को लेकर चल रही थी। मिथुन की यह फिल्म जैसे ही आई.. झुग्गी बस्तियों में तहलका मच गया था। जिसे देखो वह मिथुनकट रखकर घूमता नजर आता था। गणेश पूजा, छोटे-मोटे समारोह और बारात के आगे लड़के आईएमए डिस्को डांसर की धुन पर थिरकते नजर आते थे।

उन दिनों मुझे थियेटर से लगाव हो चला था। मेरे एक मित्र जो प्रतिबद्ध किस्म के रंगकर्मी थे, एक रोज उन्होंने मुझे बताया कि वे अपनी नाटक मंडली को लेकर गणेश पूजा में नाटक का प्रदर्शन करने जा रहे हैं। मैंने उनसे कहा-दादा आप गंभीर विषयों पर नाटक करते हैं क्या आपका नाटक गणेश पूजा के दर्शक झेल पाएंगे। मित्र ने समझाया कि नहीं बंधु यदि हम एक दर्शक को भी बदल सकें तो नाटक का उद्देश्य सफल हो जाएगा। मैं भी उनके साथ उनके नाटक को सहयोग करने चला गया।

जिस जगह नाटक होना था वहां की दशा बड़ी खराब थी। नाटक मंडली के कलाकार पर्दे के पीछे मेकअप आदि करने लग गए थे। माइक से बार-बार यह घोषणा हो रही थी- अब थोड़ी ही देर में नाटक जंगीराम की हवेली का मंचन किया जाएगा। माताओं-बहनों से अनुरोध है कि वे जल्द से जल्द काम खत्म करके नाटक को देखने के लिए आ जाए। नाटक अब होगा.. तब होगा कि घोषणा होती रही लेकिन काफी देर तक जब कोई नहीं आया तो आयोजकों ने मित्र से कहा कि आपका नाटक एकदम सडैला है क्या। मित्र ने उन्हें समझाया कि नहीं भाई, भिलाई में होने वाली बहुभाषीय नाट्य स्पर्धा में पुरस्कार पा चुका है।

यदि पुरस्कार पा चुका है तो फिर लोग क्यों नहीं आ रहे हैं
अब क्या पता.. अपसंस्कृति फैल चुकी है। मित्र ने चिंता जताई।

माइक से नाटक को मिले पुरस्कारों के बारे में फिर से बताया गया लेकिन लोग तब भी बाहर नहीं निकले। आखिरकार आयोजकों ने मित्र से पूछा कि क्या आप लोगों के पास कोई ऐसा आइटम है जो भीड़ जुटा सकें। मित्र .. आइटम शब्द को सुनकर हक्का-बक्का रह गया। उसने बताया कि ज्यादे से ज्यादा हम लोग माइक में जनगीत गा सकते हैं। आयोजकों ने जनगीत गाने की स्वीकृति दे दी। नाटक मंडली के पूरे कलाकारों ने- हम मेहनतकश जब दुनिया से जब अपना हिस्सा मांगेंगे , एक बाग नहीं एक खेत नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे... सहित जब तक रोटी के प्रश्नों पर ऱखा रहेगा भारी पत्थर जैसा दमदार गीत कम से कम दस बार गाया होगा लेकिन वाह रे लोग। रात के साढ़े दस बजे तक कोई भी शख्स रोटी-सोंटी खाकर नाटक देखने नहीं आया। इस बीच जरूर एक खुजली वाला कुत्ता मंच के पास आता रहा। जनगीत समाप्त हो जाने के बाद कुत्ता भी अदृश्य हो गया।
नाटक का मंचन नहीं होने की दशा में नाटक के कलाकार दुखी थे ही कि आयोजकों में से एक ने नया आइडिया सुझाया। उसने नाटक के कलाकारों को कहा कि अभी भीड़ आ जाएगी। उसने गणेश उत्सव समिति से जुड़े एक लड़के से कहा कि जा रहे देखके आ चेपटी घर पर है क्या। इससे पहले नाटक मंडली के कलाकार माजरा समझ पाते, चेपटी माथे पर पट्टी, बांह कटी बनियान, चमकीली पट्टी और डिस्को डांसर का कैसेट लेकर उपस्थित हो गया।

माइक से फिर घोषणा होने लगी-भाइयों नाटक नहीं देखना तो मत देखिए.. कम से कम अपने प्यारे चेपटी का डांस तो जरूर देखिए। एक बार फिर सबकी फरमाइश पर चेपटी अपना कार्यक्रम देने के लिए हम सबके बीच हाजिर है। डिस्को डांस के बेताज बादशाह चेपटी।

और फिर शुरू हुआ चेपटी का डांस- आईएमए डिस्को डांसर। एक बार दो बार तीन बार और फिर चेपटी वंसमोर। चेपटी दुबला-पतला मरियल सा काला युवक था। चेहरे पर फोंडे-फुंसियों का गोदाम बना हुआ था। नाक चेपटी होने की वजह से लोग उसे चेपटी कहा करते थे। सब जानते थे कि लड़कियां उस पर मरती है लेकिन मुहल्ले के बड़े दादा टाइप के लोग उसे इसलिए कुछ नहीं बोलते थे क्योंकि वह सबका कहना मान लिया करता था। कहना मान लेने का मतलब यह था कि जा रे चेपटी पनामा ले आ। चेपटी जी भैय्या कहते हुए पनामा(सिगरेट) लाने चल देता था।

तो चेपटी कभी अपनी टांग को बाहर फेंकता था तो कभी माइक पकड़ने का स्वांग करते हुए बिल्कुल मिथुन चक्रवर्ती की तरह पेट का निचला हिस्सा उछालता था। क्या औरतें क्या बच्चे और क्या लड़कियां सब सिसकारी लेते हुए चेपटी का डांस देखते रहे। जब चेपटी चार-पांच गानों पर नाच चुका तब आयोजकों ने घोषणा की कि चेपटी नाश्ता करने के बाद फिर नाचेगा तब तक आप लोग नाटक देखिए।
लेकिन जनता का टेस्ट बिगड़ चुका था। जैसे-तैसे नाटक जंगीराम की हवेली का मंचन हुआ। इस बीच जनता.. चेपटी-चेपटी चिल्लाती रही। साला चेपटी जब दोबारा आया तो उसने आते ही स्टेज पर इस तरह से माथा झुकाया जैसे मां सरस्वती का असली उपासक वहीं है।

तो मित्रों यह थी डिस्को डांसर की लोकप्रियता की कहानी। नाटक वाले दिन मैंने डिस्को डांसर का जो कमाल देखा था वह कुछ सालों तक और दिखता रहा। इन सालों में मैंने एक से बढ़कर एक चेपटियों को- कोई यहां नाचै-नाचै- अव्वा- अव्वा, देखा मैंने तुझे फिर से पलटके। जिमी-जिमी.. आजा-आजा जैसे गीतों पर थिरकते हुए देखा। इस बीच यह भी सुनता रहा कि फलांना डिस्को डांसर मुहल्ले की बेबी को लेकर भाग गया है। लड़की के मां-बाप जो मिथुन के पाकेट एडीशन का डांस देखने के लिए अपनी बेटी को लेकर गए थे उन्हें इस बात का पता ही नहीं चल पाया कि कब उनकी बेटी को डिस्को डांसर ने अपना शिकार बना लिया था। पिछले दिनों एक डिस्कों डांसर से मुलाकात हुई थी। जब मैने उससे कहा कि अरे क्या तुमने डांस वगैरह छोड़ दिया। भूतपूर्व हो चुके डांसर ने बताया कि उसकी डांस मे बिल्कुल भी रूचि नहीं थी। वह तो मोहल्ले की रूचि नाम की लड़की पर मरता था इसलिए दो-चार स्टेप सीख लिए थे। तो क्या रूचि तुम्हारे गियर में आई। भूतपूर्व ने बताया कि उसने अंतिम समय में डिस्कों सीखना चालू किया था। बात जम भी जाती लेकिन जावेद जाफरी बोल बेबी बोल राक एंड रोल लेकर पहुंच गए।
मतलब...
मतलब क्या.. रूचि.. मुहल्ले के बंटी के साथ उड़ गई।
खैर.. बदचलन और आवारा टाइप के लडकों को तो लड़कियां अब भी अपना दिल दे ही बैठती है, भले ही वह डिस्को डांसर हो या न हो। ऐसा क्यों होता है जरा आप भी सोचिए।

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