टीवी की महारानी एकता कपूर के तीन-चार सीरियल फिर से कहर ढाने वाले हैं। इधर-उधर चल रहे कुछ घटनाक्रम तथा एकता कपूर के बारे में सोचते जाने कब एक कविता बन गई पता ही नहीं चला।
खाते-पीते
उठते-बैठते
सोते-जागते
देख सकते हैं आप
एकता कपूर का सीरियल
लगभग हर चैनल
हर घर में मौजूद है-एकता कपूर.
समीक्षक फरमाते हैं-
एकता ने कई घरों की नींव पर
बिछा डाला है बारूद.
सिर्फ और सिर्फ अपने
संसार के बारे में ही
सोचा है एकता ने.
क्या सच है
क्या झूठ
नहीं मालूम
लेकिन इतना तय है कि
बन चुकी है एकता कपूर
हमारे समय की पहचान.
दोपहर जब खाना खाने के बाद
जब आपको लगे कि
मुंह हो गया है जरूरत से ज्यादा मीठा
तो आप
याद कर सकते हैं एकता कपूर को.
शाम जब गुपचुप
खाने का मन हो
तब भी आप सीरियल में चलने वाले चांटो को
जेब में ठूंसकर
निकल सकते हैं घर से बाहर.
लंबा टीका लगाकर
एकता कपूर अब बड़े मजे से
गा लेती है आरती
और सीरियल का लंबा आलाप
आपको खुद-ब-खुद लाकर
खड़ा कर देता है
एक पोस्टमार्टम कक्ष के बाहर.
यहां आकर आप देख सकते हैं
मुर्दों की आंखों को चूहे कैसे ले जाते हैं.
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Tuesday, May 18, 2010
एकता कपूर
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