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Monday, May 24, 2010

हर हाल में बने ब्लागरों का संगठन

हो सकता है कि हर बार कि तरह कुछ विघ्नसंतोषी मेरी बातों का दूसरा ही अर्थ निकाले लेकिन मैं मानता हूं कि जब रिक्शे और आटो वालों का संगठन हो सकता है तो फिर ब्लागरों का संगठन क्यों नहीं हो सकता है। दिल्ली के ब्लागर मिलन समारोह में इस बार भी यही चिन्ता उभरकर सामने आई है कि अब ब्लागरों को अपना एक मंच तैयार कर लेना चाहिए। मैं भले ही उस सम्मेलन का मौजूद नहीं था लेकिन मेरा मानना है कि वहां अविनाशजी ने जो बातें कही वह सौ-फीसदी सही है। ब्लागरों का अपना एक संगठन तो होना ही चाहिए।


वैसे तो पूरा ब्लागजगत ही एक तरह का मंच है, लेकिन यदि एक संगठन तैयार हो गया तो इस मंच की आवाज को एक सही शक्ल देने में सुविधा होगी। वर्तमान में ब्लागजगत के लोग जो कुछ लिखते-पढ़ते है वह खुद को आत्ममुग्ध रखने से ज्यादा कुछ भी नजर नहीं आता है लेकिन यदि संगठन तैयार हो जाता है यही आत्ममुग्धता शायद दूसरों के काम को अन्जाम तक पहुंचाने का सुख भी प्राप्त कर लेगी। मैं बहुत सारे मित्रों के ब्लागों पर जाता हूं। ज्यादातर ब्लाग तो कविता और कहानियां सुनाने के लिए ही एक पैर पर खड़े दिखते हैं (हालांकि इसमें बुराई नहीं है क्योंकि चाहे जो भी .. आखिरकार वे लोग नफरत फैलाने का काम तो नहीं करते) लेकिन कुछ ब्लाग तो निश्चित तौर पर नई जानकारियों और मीडिया के विकल्प के तौर पर अपना काम करते हुए नजर आते हैं। कई बार तो लगता है कि जो खबरें मीडिया के नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह जाती है उनका प्रकाशन किसी न किसी रूप में ब्लागों पर हो ही जाता है। सूचनाओं के विस्फोट से भरे इस खतरनाक समय में जबकि सारी चीजें बाजार आधारित बनती जा रही है यदि वहां हम मंच तैयार कर सकें तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। हालांकि बाजार की ताकतों का मुकाबला आसान नहीं माना जाता फिर भी हस्तक्षेप या दखल को कम करके नहीं आंका जा सकता है।

ब्लागर मंच या संगठन को लेकर कुछ चिरकुट यह सवाल उठा ही सकते हैं कि इससे मठीधीशी चालू हो जाएंगी.. कुछ लोग राज करने लगेंगे। कुछ लोग अपनी चलाएंगे.. कुछ लोग अपने मतलब की बातों को परोसने के लिए एकजुटता दिखाएंगे आदि.. आदि।

चिरकुटों के यह सवाल तब लाजिमी हो सकते हैं जब संगठन से जुड़ने वाले लोग गलत प्रवृति के निकलेंगे। गलत प्रवृतियों के लोग जहां कही भी रहेंगे वे अपने आपको बगैर चुनाव के भी स्वयंभू बताते रहेंगे। ऐसे मठाधीशों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कोई उनका नाम लेकर दिन में कितनी बार थूकता है। चिरकुट... पद आदि पाने के लिए भी जी-तोड़ लगाने का सवाल उठाकर भ्रम फैला सकते हैं। वैसे ही जैसे किसी महापुरूष ने यह सवाल उठा दिया था कि पिछली ब्लागर मीट का अजय झा जी हिसाब दें। बहरहाल दिल्ली के ब्लागर सम्मेलन में एक नई दिशा दिखाई है। सोचिए यदि हम सबका एक संगठन दिल्ली में हो और फिर हम एक ईकाई के तौर पर उससे जुड़े रहे तो कितना मजा आएगा। मैं तो उस दिन की कल्पना करके प्रसन्नता से भर उठ रहा हूं जब मैं घर से सूटकेस तैयार कर यह कहते हुए निकलूंगा कि चार दिन बाद तो लौट ही आऊंगा, ब्लागर सम्मेलन में जा रहा हूं। और फिर सम्मेलन में जब देश-दुनिया की चिन्ता करने वाले एक से बढ़कर एक लोगों से मुलाकात होगी तो क्या नहीं लगेगा कि मेरा घर थोड़ा बड़ा हो गया है। सम्मेलन में पहुंचने के बाद जब कोई इस बात के लिए चिहुंक उठेगा कि अरे बिगुल वाले भाई... तो क्या उस खुशी को मैं अपनी आंखों के कैमरे में हमेशा के लिए कैद नहीं करना चाहूंगा। मुझे हर रोज नए लोगों से मिलना-जुलना अच्छा लगता है इसलिए मैं संगठन को बनाए जाने के पक्ष में हूं। मेरे ख्याल से आप भी होंगे , तो फिर जोर से बोलिए- कितने बाजूं कितने सर, लेले दुश्मन जान के
हारेगा हर वो बाजी खेले जब हम जी जान से

ब्लागर एकता जिन्दाबाद.
(जल्द ही छत्तीसगढ़ में भी एक ब्लागर सम्मेलन होगा और हम लोग इस बात पर मंथन करेंगे कि क्या कुछ नया कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ का दिल दिल्ली से जुड़ा हुआ है)

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